बिहार चुनाव से पहले बढ़ती हत्याएं: क्या कानून-व्यवस्था पर संकट के बादल?

बिहार चुनाव से पहले बढ़ती हत्याएं: क्या कानून-व्यवस्था पर संकट के बादल?

जैसे-जैसे बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 की तारीखें नज़दीक आ रही हैं, राज्य में हत्या और जघन्य अपराधों की घटनाएं बेकाबू होती जा रही हैं। लोकतंत्र का यह पर्व जहां जनता की आवाज़ को सम्मान देने का प्रतीक होता है, वहीं बिहार में यह डर, हिंसा और खून-खराबे के साये में ढंकता नज़र आ रहा है।

बक्सर: दिनदहाड़े तिहरी हत्या से दहशत

24 मई को बक्सर जिले में दिनदहाड़े तीन लोगों – विनोद, सुनील और वीरेंद्र सिंह – की बेरहमी से गोली मारकर हत्या कर दी गई। घटना के पीछे राजनीतिक रंजिश बताई जा रही है, और आरोपियों की तस्वीरें राजद नेताओं के साथ वायरल होने से मामला और अधिक संवेदनशील हो गया। मृतकों के परिजनों ने प्रशासन पर कार्रवाई में लापरवाही का आरोप लगाया।

बेतिया: दो महीने बाद मिला अमित कुमार का कंकाल

18 वर्षीय अमित कुमार महतो की हत्या कर उसके शव को ठिकाने लगा दिया गया। कंकाल दो महीने बाद बरामद हुआ। हत्या में राजू मियां और फूल मियां का नाम सामने आया, जिनकी गिरफ्तारी के बाद परिजनों ने पुलिस की निष्क्रियता पर सवाल खड़े किए।

मुजफ्फरपुर: 9 साल की बच्ची के साथ हैवानियत

26 मई को दलित समाज की एक बच्ची के साथ बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी गई। बच्ची को चॉकलेट का लालच देकर खेत में ले जाया गया और दरिंदगी की हदें पार की गईं। यह मामला राष्ट्रीय महिला आयोग तक पहुंचा और सरकार की कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठा गया।

छपरा (सारण): अपराध का नया केंद्र

सारण जिले में लगातार हो रही हत्याओं और हिंसक घटनाओं ने छपरा को “अपराध का नया केंद्र” बना दिया है:

  1. 28 मई को शोरूम मालिक और पूर्व मेयर प्रत्याशी अमरेंद्र सिंह समेत दो लोगों की हत्या।

2. 15 वर्षीय छात्र अमित श्रीवास्तव की चाकू मारकर हत्या।

3. 10 साल की बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या।

4. जाकिर कुरैशी की हत्या और फरार आरोपी।

5.ट्रैक्टर लूट की घटना में चालक पर हमला।

इन सब घटनाओं से साबित होता है कि अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि वे खुलेआम हत्या और बलात्कार जैसे अपराध को अंजाम दे रहे हैं।




राजनीतिक अपराधियों की हकीकत

एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछली बिहार विधानसभा में 243 में से 163 विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे, जिनमें 123 पर गंभीर धाराएं थीं। जब विधायकों के अपराधीकरण का स्तर इतना ऊंचा हो, तो आम जनता की सुरक्षा की उम्मीद करना एक धोखा बन जाता है।


क्या बिहार में निष्पक्ष चुनाव संभव है?

इन घटनाओं ने पूरे राज्य में भय का वातावरण बना दिया है। लोगों में डर है कि कहीं चुनाव में भाग लेने की स्वतंत्रता भी छीनी न जाए। यदि समय रहते प्रशासन और चुनाव आयोग सख्त कदम नहीं उठाते, तो इस बार का चुनाव लोकतंत्र के लिए सबसे काला अध्याय बन सकता है।


निष्कर्ष:

बिहार में हत्याएं अब केवल आपराधिक मामले नहीं रहीं, वे अब सियासी हथियार बन चुकी हैं। जनता को चाहिए कि वे ऐसे नेताओं को सबक सिखाएं, जो अपराधियों को संरक्षण देकर सत्ता तक पहुंचना चाहते हैं। वहीं प्रशासन और चुनाव आयोग को चाहिए कि वे सुरक्षा और निष्पक्षता सुनिश्चित करें।

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