परिचय: बिहार की राजनीति में जहां वर्तमान में नीतीश कुमार का वर्चस्व है, वहीं बिहार का अतीत एक सुनहरे युग की गवाही देता है। स्वतंत्र भारत में बिहार का पहला चुनाव, पहला मुख्यमंत्री और पहली विकास यात्रा – ये सब कुछ श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में संभव हुआ। आइए जानते हैं उस स्वर्ण युग की कहानी, जिसने बिहार को नई दिशा दी।
बिहार की लोकतांत्रिक शुरुआत:
1951 में आज़ादी के बाद भारत का पहला आम चुनाव हुआ, जिसमें कांग्रेस ने 322 में से 239 सीटें जीतकर बहुमत हासिल किया और जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने। इसके बाद 1952 में बिहार में पहला विधानसभा चुनाव हुआ, जिसमें कांग्रेस ने जीत दर्ज की और श्रीकृष्ण सिंह राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने।
महत्वपूर्ण आँकड़े:
- वर्ष: 1952
- मतदाता: लगभग 1.8 करोड़
- वोटिंग प्रतिशत: 55%
- सीटें: 330
- पार्टियां: 13
- लोकसभा सांसद: 44
श्रीकृष्ण सिंह को ‘बिहार केसरी’ कहा गया। उनका कार्यकाल 1937 से 1961 तक चला, जो राज्य के विकास की नींव रखता है।
श्रीकृष्ण सिंह का स्वर्ण युग:

प्रमुख उपलब्धियाँ:
- उद्योग:
- हटिया में Heavy Engineering Corporation (HEC)
- बरौनी ऑयल रिफाइनरी (देश की पहली)
- सिंदरी फर्टिलाइज़र प्लांट
- बोकारो में SAIL स्टील प्लांट
- रेलवे और पुल निर्माण:
- गढ़हरा में एशिया का सबसे बड़ा रेलवे यार्ड
- गंगा पर पहला रेल-सड़क पुल: राजेंद्र सेतु
- कृषि और सिंचाई:
- कोसी परियोजना (बाढ़ नियंत्रण + सिंचाई)
- साबौर कृषि कॉलेज की स्थापना
- शिक्षा और संस्थान:
- बिहार, भागलपुर और रांची विश्वविद्यालय का विस्तार
- अन्य:
- बरौनी डेयरी की स्थापना
- मिस्टर एपलबाई (फोर्ड फाउंडेशन) द्वारा बिहार को “देश का सबसे अच्छा शासित राज्य” और “दूसरी सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था” का दर्जा
चुनौतियाँ:
- जमींदारी व्यवस्था
- बाढ़ और सूखा
- बेरोजगारी
- भूख और गरीबी
निष्कर्ष:
श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में बिहार ने जिस विकास की नींव रखी, वह आज भी प्रेरणा का स्रोत है। यह इतिहास केवल जानकारी नहीं, बल्कि बिहार की आत्मा का प्रतिबिंब है। बिहार आज भी देश की राजनीति और सामाजिक विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। भविष्य में यह प्रदेश अपने अतीत की विरासत को सम्मान देते हुए नई ऊंचाइयों तक पहुंचे – यही उम्मीद है।